☀️🌷परिवर्तन☀️🌷धनञ्जय गांगेय

हम पढ़ते है सोचते है पर कर नहीं पाते है,बदलते है बदलाव चाहते है पर कर नहीं पाते है।सच्चाई,ईमानदारी लाना चाहते है पर ला नहीं पाते है,शिक्षा,शिक्षक में परिवर्तन लाना चाहते है पर कर नहीं पाते है,जातियाँ मिटती नहीं दूरियां घटती नहीं,वे हिंसा नहीं छोड़ते हम नफरत से परे नहीं जाना चाहते है।शांति से उन्हें प्रेम नहीं ,लोभ लाभ की छाया हमें घेरे है।

सोचते है एक दुनिया बसाउ जहाँ प्रेम,शांति,अहिंसा,सौंदर्य हो एक दूसरे की पीड़ा महसूस हो।जाति धर्म की चकल्लस न हो।ज्ञान विज्ञान हो ।लोग कहते है न बाबा न बिना हिंसा द्वेष वैमनस्यता प्रतियोगिता मार काट के कौन सा समाज वह नीरस होगा उसमे कोई मजा नहीं होगा।

कुछ खेल कुछ राग कुछ संगीत कुछ अहसास कुछ अनुभूति जीने की ।बस समझने वाला कोई नहीं।जंगल में वह मोर नाच रहा है जिसे किसी ने नहीं देखा।जीवन की दौड़ किस पर रुके ।जब उसने चलना ही नहीं सीखा तो बदलना कैसे आये?कुछ उदासी कुछ विराग सा कुछ अपनापन कुछ टेढ़ापन।बस जिंदगी संसाररूपी सागर में थाह लेना चाह रही है।

5 thoughts on “☀️🌷परिवर्तन☀️🌷धनञ्जय गांगेय

    1. बहुत आभार मेरी बात आपके मन की होगई
      यदि तो मनुष्यता है।जहाँ मनुष्य एक तरह से सोचते है।🙏🙏

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