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घोटाले का तंत्र
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Msp घोटाले में मार्केट इंस्पेक्टर,स्थानीय कर्मचारी,
लोकल नेता और दलाल मिल कर सरकार की योजना पर पानी फेर दे रहे है। किसान के रजिस्ट्रेशन के बाद कई तरह मीन-मेख निकाल देते है दूसरे उत्तरप्रदेश के प्रयागराज में इसबार क्रय केंद्रों पर मंसूरी धान की खरीद हो रही थी अन्य धान की पहुँच MSP से दूर थी।
खंड स्तर से शुरू होकर यह MSP राज्यों के स्तर पर आसन्न भ्रस्टाचार में लिप्त होगयी है देश स्तर पर इसका घोटाला लाखों करोड़ का होगा। जनता के पैसे को अधिकारी,दलाल और नेता पानी कर दे रहे है।
सरकार ने Msp 1868 ₹ सामान्य धान के लिए घोषित किया है । जिस किसान ने पिछले बार क्रय केंद्र पर धान बेचे है लेकिन इस पर बार वह “मंसूरी धान” न होने की वजह नहीं बेच पाया। उसके खाते का भी रजिस्ट्रेशन मिली भगत से करके धान बेच लिया जाता है। धान की खरीद सरकार क्षमता से अधिक करती है लेकिन उसका लाभ किसान को नहीं मिल पा रहा है।
दूसरी तरफ किसान के खाते में कोई समस्या दिखा कर किसान के धान नहीं है या धान की गुणवत्ता में कमी,धान में धूल आदि कह कर भी कम दाम में लिया जाता है। एक जुगाड़ और चलता है कि आप का इतना कुन्तल है आप इतना पैसा एडवान्स दे दीजिए आपकी खरीद हो जायेगी।
उसी जगह पर मील वाले और व्यापारी का धान धड़ल्ले से ले लिया जाता है। घपले बाज बाकायदा एक टीम बनाये है जो किसानों के यहाँ जाकर उनका धन घर से तौल कर कम कीमत पर लेकर लेवी पहुँचा देते है।
भ्रष्ट्राचार का एक पूरा तंत्र विकसित है जो सरकारी व्यवस्था को पंगु कर देता है कोटरदार,प्रधान,ग्राम सचिव तक हाल बहुत बुरा है। सरकारी लाभ जो जनता तक पहुँच सके वह सब बीच में इनके घर भर रहे है।
सार्वजिनक वितरण प्रणाली (PDS) में जितना खाद्यान सरकार से तय है उसमें वजन कम जरूर देगा। पूछने पर कोटेदार कहता है कि घर से नहीं देगें हमें भी ऊपर तक देना रहता है।
यह धंधा मौन स्वीकृति पर चल रहा है किसी शिकायत पर एक मैनेज करने वाला मैकेनिज्म रहता है जो शिकायती पर दबाव डालकर उसे शिकायत लेने पर मजबूर करता है।
प्रधान,कोटेदार,सचिव,लेखपाल,थाने, लोकल नेता सबकी मिलीभगत से जुगाड़ चल रहा है। आम जनता कहा तक और किससे- किससे शिकायत करें।
सब जगह दलाल और सरकारी गिद्ध सक्रिय है।
लौटते है MSP घोटाले पर सरकार को चाहिए कि किसानों का जितना भी कोटा है उस पर बायोमेट्रिक व्यवस्था को लागू किया जाय। जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि खरीद सही व्यक्ति से हो रही है। साथ ही जिस किसान की फसल क्रय नहीं कि गयी उस पर रिपोर्ट लगायी जाय उसके साथ किसान का सहमति पत्र भी रहे जिसमें स्पष्ट कारण हो किसकी वजह से किसान की फसल खरीद नहीं हो सकी है।
-किसान पोर्टल पर किसान अपने बोए गए फसल क्षेत्र के अनुसार धान/गेहूं का रजिस्ट्रेशन करवाता है।
किसान के खतौनी नंबर का प्रयोग करके कोई भी व्यक्ति बटाईदार या कांट्रैक्ट फाॅर्मिंग के विकल्प द्वारा फर्जी रजिस्ट्रेशन कर सकता है।
- खरीद केन्द्र पर केन्द्र प्रभारी को घूस देकर आराम से फर्जी रजिस्ट्रेशन पर धान बेंच सकता है।
-बिचौलिए उपरोक्त प्रक्रियाओं को अपनाकर ही पहले किसान से MSP से आधे मूल्य पर फसल खरीद लेते हैं और केन्द्र प्रभारी को रिश्वत देकर आराम से अच्छा मुनाफा कमाते हैं
-देखने में ये भी आया है कि केन्द्र प्रभारी जो कि सरकारी नौकर(SMI) होता है, वह किसानों के गतवर्ष के कागजातों को सहेजकर इस वर्ष घोटाला करता है। यानी किसानों के खाते का फर्जी बटाईदार बनकर।
अब इस घोटाले से निपटने का सबसे सरल उपाय जो सरकार को लागू करना चाहिए वह निम्नलिखित है….
किसान रजिस्ट्रेशन में किसानका बायोमेट्रिक(अंगूठे का)सत्यापन अनिवार्यकिया जाए।
बटाईदार और कांट्रैक्ट फार्मिंग के विकल्प को किसान द्वारा ही भरा जाए। यानी बटाईदार का भी रजिस्ट्रेशन भी किसान द्वारा ही हो और प्रपत्र में बटाईदार और कांट्रैक्टर का विकल्प चुनने का अधिकार केवल किसान को ही हो। क्योंकिकिसान को ही पतावहै कि वास्तविक बटाईदार/कांट्रैक्टर कौन है।
रजिस्ट्रेशन का सबसे घातक विकल्प यही है जिसके द्वारा बड़े पैमाने पर घोटाला हो रहा है। इस प्रकार किसान की खतौनी का इस्तेमाल करके कांट्रैक्टर या बटाईदार न तो रजिस्ट्रेशन कर पाएंगे और न ही धान विक्रय कर पाएंगे।
- रजिस्ट्रेशन प्रपत्र में बटाईदार/कांट्रैक्टर का विकल्प चुनने के बाद उसका आधार व बैंक ब्यौरा भी किसान द्वारा ही भरा जाए और बटाईदार/कांट्रैक्टर का भी बायोमेट्रिक सत्यापन किया जाए।
- अंत में सरकारी खरीद केन्द्रों पर तौल के समय भी किसान/बटाईदार/कांट्रैक्टर का बायोमेट्रिक सत्यापन किया जाय।
जनता का पैसा जनता की भलाई के लिए प्रयोग न होकर अधिकारी और दलाल की कमाई का साधन बन गया है?
दिल्ली में चल रहा किसान आंदोलन का एक मुख्य विषय MSP है और MSP की व्यवस्था ऐसी बना दी जा रही है। किसान की मजबूरी है कि तैयार फसल को कितने दिन तक अपने पास रखे जबकि फसल मूल्य से उसके काफी काम होने बाकी रहते है।

MSP क्या है…
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न्यूनतम समर्थन मूल्य(MSP) सरकार की ओर से किसान के उपज की गारंटी है। देश में पहली बार MSP की जरूरत लालबहादुर शास्त्री जी के समय में 1966-67 में गेहूँ के लिए ऐलान किया गया। फिलहाल यह रवि और खरीफ मिलाकर 20 से अधिक फ़सलों पर दिया जाता है।
MSP का निर्धारण कृषि लागत एवं मूल्य आयोग द्वारा किया जाता है। अगर मंडी में किसान को MSP से ज्यादा पैसे नहीं मिलते तो सरकार किसान की तय मूल्य पर खरीद कर उसका भंडारण फूड कारपोरेशन आफ इंडिया (FCI) और नफेड के पास करती है। इन्ही स्टोरों से सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के जरिये गरीबों तक सस्ते दामों में अनाज पहुँचाया जाता है। यह 20 से ज्यादा फसलों पर दिया जाता है जबकि सरकार आधिकांशत: गेंहू-चावल का क्रय करती है।
बड़ी से बड़ी व्यवस्था यदि भ्रष्टाचार के चपेट में आ गयी तो वह मूल उद्देश्यों के पूरा होने के पहले ही दम तोड़ देती है। किसान की आय 2022 तक दुगुनी कैसे होगी जब वह इन गिद्धों के चंगुल में रहेगी। सरकार को एक सुदृढ़ मोनिटरिंग व्यवस्था रोपित करनी चाहिये जिससे किसान और आम जनता के हितों का संवर्द्धन हो सके।