मैंने कब ऐसा सोचा कि मुझें तुम खुशियां दो।
मैं सिर्फ जुड़ना चाहता था मैं एक होने की अनुभूति चाहता था
मेरी पीर तुम्हारें में तुम्हारी मेरे में होने लगे।
मनुष्य चालक और शातिर भी वह साथ ही सहज और सरल भी हो सकता है।
तुम सिर्फ अपने मन का देखती हो मेरे मन क्या!
तुम दुनियावी दुःख का कारण मुझे कैसे मानती हो।
मैंने कभी किसी को तकलीफ देने के विषय में नहीं सोचा।
क्या तुम्हें मेरा मेरा प्यार नहीं दिखता।
उम्र भले बढ़ती गयी हो हम जिसे प्यार करते है उसके लिए बच्चों से मासूम हो है।
प्यार के मामले में उससे माँ वाली फीलिंग चाहते है।
तुम इतना क्यों सोचती हो। मेरे पुरुष होने का तुम्हें इतना सुबा है।
मेरे में भी एक कोमल मन है जैसा तुम रखती हो तुम जिस तरह अपने लिए चाहती हो उसी तरह मैं भी चाहता हूँ।
एक होने का मतलब है मेरे तुम्हारे अहम का चला जाना।
जीवन एक बार का मिला है हम जीते कैसे यह ज्यादा महत्वपूर्ण है बजाय हम मरते कैसे है?
तुम चाहों तो सब बदल सकता है लेकिन तुम्हारा तुम मेरे मैं आना नहीं चाहता है।
बड़ा आसान मैं और तुम चलो हम बन जाते है।