संस्कृति की खोज 🚩 गांगेय🏵️
भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे प्रचीन संस्कृति है सनातन धर्म शाश्वत तरीके से गतिशील है।
आज के आधुनिक युग में विश्व के हर कोने से लोग भारत के धर्म और संस्कृति में रुचि ले रहे है। इसी दीपावली पर अमेरिका भी सेलिब्रेट करने के साथ इसकी प्रशंसा करता दिखाई पड़ा।
सनातन हिन्दू धर्म के विरोध में विश्व में अनेक मत,पन्थ,मजहब के अलावा भारत में ही एक खास वर्ग बन गया है जो हिन्दू धर्म के विरोध में है। यह विरोधाभाष है कि भारत की राजनीति हिन्दू धर्म के विरोध में रही है । क्योंकि नकल के संविधान का एक उद्देश्य है भारत को नास्तिक बनाना। लोगों पर संविधान की सर्वश्रेष्ठता लोकतंत्र के नाम पर आरोपित करना।
बीजेपी के उभार से पुराने सेकुलर भी अपने को हिन्दू कहता नजर आ रहा है जो अपने को अभी तक इंसान,सेकुलर,बौद्धिक,मार्डन, कम्युनिस्ट न जाने क्या क्या कहता फिरता था।
सोचने का विषय है कि भारत बाह्य शत्रु से संघर्ष करे या आंतरिक शत्रु से।
विश्व में सिर्फ भारत में खासकर हिंदुओं में ही लोग मिलेंगे जिन्हें अपनी संस्कृति और धर्म से द्रोह है। अब समझिये यह द्रोह क्यों है? प्रचीन काल से भारत में एक वर्ग रहा है जिसे सत्ता प्राप्त करने की प्रबल आकांक्षा रही है उसके लिए वह कुछ भी करने को तैयार रहा है। विदेशियों के लिए अपने देश की जासूसी। उन्ही के वंशज आज भी वही कार्य कर रहे है।
कोई नीली छतरी, कोई लाल तो कोई पंजा पकड़ लिया है। सूरतेहाल यह कि देश रहे या न रहे सत्ता मेरी रहे ,मेरी जाति केंद्र में हो।
सबसे बड़े आतंकवादी वह है जो जनसंख्या वृद्धि में लगे। यह बढ़ती जनसंख्या सभी समस्या का पर्याय बन जा रही है। लोकतंत्र में लगता है कि जनसंख्या अधिक करने पर सत्ता का अपहरण स्वमेव हो जायेगा।
भारत के अंदर धर्म -संस्कृति का विरोध करने वाले के पीछे सत्ता की भावना छिपी है। सबसे बढ़कर अंग्रेजी व्यवस्था भारतीयता के विरोध में है वह भारत में काले अंग्रेज चाहती है जिसकी श्रद्धा लंदन और पोप में रहे।
भारतीय मूल के लेखक वी यश नायपाल सही लिखते है कि विश्व में एक मात्र भारत देश है जहाँ के इतिहासकार अपने गुलाम बनाने वाले देश को आधार मानकर लिखा है अंग्रेज लेखन आज भारत का अभिलेखीय प्रमाण है।भारत का इतिहासकार उन्ही अंग्रेजों के लिखे इतिहास को सत्य मानता है और उसी को अपनी पीढियां को पढ़ाता है यदि वह पढ़ कर भारत को गाली देने लगा समझिये एक आधुनिक मनुज तैयार हो गया।
भारत की मानसिक पकड़ भारत से बाहर के विदेशी निर्धारित करते है। नोबल जैसा पुरस्कार अब तक जितना दिया गया है उसे देखिये यह किन देशों को अधिकतम दिया गया है फिर भारत का पढ़ा लिखा आदमी इसी पुरस्कार का सपना सजो लेता है।
भारत को मानसिक रूप से आज भी गुलाम बनाने वाले देश ब्रिटेन पर विचार करिये उसने अपने भौतिक विकास के लिए आधे विश्व को उपनिवेश बना दिया था क्योंकि उसको लंदन और लंकाशायर जैसे शहरों का विकास करना था। 18 वीं सदी तक ब्रिटेन के लोग हग कर पालीथीन में रखते थे । वह भारत पर 200 वर्ष तक शासन कैसे कर सकते है क्योंकि भारत में कुछ लोग ऐसे थे जिन्हें सत्ता की नजदीकी चाहिए थी।
आप को क्या लगता है विकास का पर्याय शहरीकरण है दिल्ली,मुम्बई जैसे मेट्रोपोलिटन सिटी बना कर क्या मनुष्यता का विकास हो जायेगा?
संस्कृति का वाहक ग्राम्य भारत और माता रही है। भारत की सबसे मजबूत ईकाई परिवार को बिखण्डित करने के लिए माता को भारत के विरुद्ध, देह सुविधा के नाम पर खड़ा किया गया। वह बड़े अभिमान से अपनी तुलना फिल्मी पतुरिया से करने लगी। हांडा रानी,लक्ष्मीबाई उसके लिए गाली का पर्याय बन गयी है। यहाँ तक कि सनी लियोनी से तुलना को भी वह स्वीकार ली । यह बौद्धिक दिवालयापन है।
एक विषय सदा जीवन रहेगा किसका विकास और कितना विकास ? भौतिक विकास के बीच संवहनीय विकास की बात मजबूती से होनी प्रारम्भ है। विकास के नाम मनुष्य वस्तु बना दिया गया उसकी जीवंतता गायब है वह जून के महीने काला कोट और टाई लगाये घूम रहा है।

भौतिक विकास नगर-शहर-सिटी तक पहुँच गया है विकास समृद्धि नहीं बन सकता है भौतिक परिसम्पत्तियों का विकास कर मानवीय पूंजी और वास्तविक बौद्धिक पूंजी को कैसे सुरक्षित रखेगे ।
भारत की एकमात्र समस्या है इसकी मानसिक गुलामी। भारत का व्यक्ति भारतीय मूल का बन कर नोबल कैसे पा जाता है। छोड़िए आप विचार न करोगे। तुम अपनी जाति के लिए सोच रहे हो ।
Yes absolutely our main problem is mental slavery, very well written and vash Naipaul had written it correctly. Thank you for sharing! 🙂💓👍
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